ओपीपी/सोपानकोरबा. देश की आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों ने 200 साल तक अंग्रेजी में सत्ता के प्रभाव से भारत को आजाद कराने के लिए संघर्ष किया। अलग-अलग स्तरों पर हुई क्रांतियों और संघर्षों के बाद अंततः देश को आजादी मिली। इसी स्मारक युद्ध को याद करते हुए बनाए गए स्मारकों में स्वतंत्रता सेनानियों की याद में जय स्तंभ बनाए गए हैं, जो उनके बलिदान को स्मरण करते हैं। हालांकि कोरबा के पुराने बस स्टैंड में जय स्तंभ की आपमानिका स्थिति बनी हुई है, लेकिन आसपास के लोग इसे यहां की गंदगी और नैतिकता से वंचित महसूस कर रहे हैं। लोग वहां पर दवा का इस्तेमाल भी कर रहे हैं, जो एक गंभीर समस्या है।
स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वालों के प्रमुख नाम उनके स्वयं के अवशेषों में बने जय स्तंभों में अंकित हैं। इस माध्यम से आज की पीढ़ी को याद किया जा रहा है कि गुलामी के दौर में हमारा संघर्ष कैसा था और आजादी के लिए कौन-कौन से महान वीर योद्धा महत्वपूर्ण भूमिका निभाए थे। कुछ दशक पहले कोरबा के पुराने बस स्टैंड क्षेत्र में गीतांजलि हवंत के पास एक स्मृतिस्तंभ खड़ा किया गया था, जिसमें भारत के राष्ट्रीय चिह्न के साथ स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी प्रस्तुत की गई थी।
इस स्तंभ से हमारे रूम और सम्मान का भाव स्वतंत्रता संग्राम के वीर संघर्षी लोगों की याद में जीवित है, हालांकि इसकी समस्याओं के कारण इसे रूप में चित्रित नहीं किया जा रहा है। में असिद्धांत की समस्या बढ़ रही है, जिसके लिए पास के लोग क्षेत्र में हैं। स्वतंत्रता दिवस की 76वीं वर्षगांठ से पहले इस स्मृतिस्तंभ की समीक्षा की गई। यहां के लोग जय स्तम्भ के अनुभव की स्थिति पर बहुत नाराज़ हैं। क्रांतिकारी से लेकर शहीद क्रांतिकारियों की याद में विभिन्न स्मारकों का निर्माण जारी है और इन स्मारकों के प्रति सभी का आकर्षण बढ़ता जा रहा है। इनमें से प्रत्येक प्रतीक में राष्ट्रीय भावनाओं का संवाद करने का महत्वपूर्ण योगदान है। जय स्तंभ का आकलन भी इसी दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए, हालांकि दुर्भाग्य से स्थानीय स्तर पर उनकी स्थिति के अनुसार कुछ कमजोर है।
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पहले प्रकाशित : 16 अगस्त, 2023, 18:02 IST
