रामकुमार नायक/महासमुंद (दुर्ग)- भारत ने चंद्रमा की भूमि पर चंद्रयान-3 का उद्भव कर इतिहास रच दिया है। देश को गौरवान्वित करने वाले चंद्रयान-3 की टीम में दुर्ग जिले के चारोदा जी केबिन का होनहार युवा वैज्ञानिक भरत कुमार भी शामिल हैं। बेहद गरीब परिवार के इस होनहार ने अपनी प्रतिभा के बूते इसरो में नौकरी पाई है। भरत कुमार की कहानी में बताया गया है कि किन परिस्थितियों से लड़कियाँ यहाँ कहाँ पाई जाती हैं।
देश के एक अत्यंत गरीब परिवार से आने वाले भारत ने चंद्रयान की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत का जन्म छत्तीसगढ़ के चरौदा के एक गरीब परिवार में हुआ। घर पर रखने के लिए उनके पिता ओबामा गार्ड का काम करते थे। जबकि उनकी मां चाय और इडली की दुकान चलाती थीं। आर्थिक तंगी के बावजूद माता-पिता ने अपनी पढ़ाई के लिए अपना सपना पूरा करने के लिए कोई सलाह नहीं दी।
माँ चलाती है चाय और इडली की दुकान
भारत बचपन से ही पढ़ाई में उत्साहित थे। अपनी मेहनत और पढ़ाई के दम पर उन्होंने 12वीं के बाद आईआईटी में दाखिला ले लिया। उनकी योग्यता और मेहनत को देखते हुए स्कूल ने 9वीं कक्षा के बाद उनकी फीस माफ कर दी थी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी आईआईटी में पढ़ाई करते समय भी भारत के सामने आर्थिक समस्या आई। ऐसे में रायपुर के बिजनेस प्लांट अरुण और जिंदल ग्रुप ने अपना साथ दिया। पढ़ाई के लिए पैसे की जरूरत है। इस तरह से सामने आए उन्होंने आईआईटी में 98 फीसदी मार्क्स के साथ पासआउट किया और कॉलेज में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए उन्हें गोल्ड मेडल भी दिया।
इसरो में हुआ चयन
जब भरत कुमार आईआईटी के लिस्ट में शामिल हुए तो उन्हें इसरो की नजर में जगह मिली और उनकी उम्र महज 23 साल थी और इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इसके बाद वह चंद्रयान 3 मिशन से जुड़े और देश-दुनिया में सफलता की नई कहानी, दिग्गजों की टीम का हिस्सा बने।
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पहले प्रकाशित : 26 अगस्त, 2023, 12:49 IST
