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भोपाल के नवाब ने क्या कहा था कराची में बैंक ऑफ भोपाल की कंपनी


उत्तर

भोपाल के नवाब आजादी के दौरान जिन्ना के प्रभाव थे और तब भारत के साथ विलय में समस्याएं पैदा हो रही थीं
भोपाल नवाब की बड़ी बेटी आजादी के बाद पाकिस्तान छीन लिया और वहां पूरी जिंदगी शानोशौकत से गुजराती

जब देश का बंटवारा हो रहा था और ये आज़ाद होने वाला था, तब कई ऐसी रियासतें थीं जो भारत में विलीनीकरण को तैयार नहीं हुईं। इनमें मुख्य रूप से जूनागढ़, हैदराबाद और जयपुर रियासतें शामिल हैं, जो बड़ी भी थीं और काफी मशहूर भी थीं। इन इमामों के शासक शुरू से जिन्ना के संपर्क में थे। जिन्ना जैसे ही उन्हें पढ़ा रहे थे, वो आदर्श ही कर रहे थे। सिकंदर ने निज़ाम ने तो बहुत मोटा नकद लंदन बैंक में जमा किया। उसे मुख्य लाभ पाकिस्तान को मिला। भोपाल के नवाब ने पाकिस्तान के बड़े हिस्से का खजाना वहां बैंक ऑफ भोपाल की ब्रांच स्केल की योजना बना ली।

भोपाल के नवागत हमीद असद ने कहा था कि जो ना केवल अपने खिलाफत के खिलाफ भारत में विलय कर रहे थे बल्कि ऐसे राजा और नबावों के गुट की अवज्ञा कर रहे थे, जो पाकिस्तान के संस्थापक लियाकत अली जिन्ना से बात करने में लगे थे। भोपाल के नवाब के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसी क्रम में रियासत का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान भेज दिया गया।

तो बेटी ने पिता की चाल में फंसने से इंकार कर दिया
खजाना के बाद नवाब ने जब अपनी बेटी आबिदा सुल्तान से भोपाल से रियासत का शासक बनने के लिए कहा तो बेटी को लग गया कि वे उसे फंसा रहे हैं। उन्होंने प्रशंसा की और ना केवल उनके सहयोग को अस्वीकार कर दिया बल्कि खुद जिन्ना से बात करके पाकिस्तान को चुनौती दी।

हालाँकि बेटी भी अपना काफी पैसा लेकर चली गई। वहां उन्होंने ताजिंदगी ऐशोआराम की जिंदगी गुज़ारी। बाद में भोपाल के नवाब की बेटी का बेटा शहरयार खान पाकिस्तान का विदेश मंत्री भी बन गया और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष भी बन गया।

भोपाल के नवाब हमीद सईद खान की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान पाकिस्तान चली गईं और फिर कभी वापस नहीं आईं। पाकिस्तान के शासक वर्ग के बीच उसका अच्छा पैठ था। बाद में उनके बेटे सिटीयार खान भी वहां के विदेश मंत्री बने। (न्यूज18)

पिता के इस कदम ने बेटी को इतना नाखुश कर दिया कि वह पिता बार-बार इस प्लांट को अनसुना कर दिया कि उसे वापस भोपाल लौटकर गद्दी संभालनी चाहिए।

जिन्ना की डेथ ने सारा का किरदार निभाया
नॉवल भोपाल ने पाकिस्तान के मोती नोटबुक उद्यम के बाद हज का रुख किया। योजना ये थी कि हज करके लौटेंगे तो जिन्ना के साथ बात और पक्की करेंगे। फिर से पाकिस्तान में एलेआम पैशन हासिल कर बाकी। रिश्‍तेदार नवाब हमीदुल्ला ने भोपाल रियासत के जिस बैंक का पैसा और अपना खजाना पाकिस्तान साझे में वहां बैंक की शाखा बैंक की योजना बनाई थी, उसका नाम बैंक ऑफ भोपाल था। जो भोपाल में पहले से चल रहा था।

जिन्ना भी नॉवल भोपाल को कई तरह के पब्लोभान डेक भारत की परेशानी बढ़ाने में लगे थे। संभवत: भोपाल नॉमिनेट पाकिस्तान चले ही गए लेकिन 11 सितंबर 1948 को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हो गई, जिन्होंने अपनी सारी बिसात ही उलट दी। इस मौत ने ना केवल पाकिस्तान का तेजी से परिवर्तन किया बल्कि भोपाल और हैदराबाद के विरोधी चालों को भी तोड़ दिया। भोपाल नॉवल को सरदार पटेल ने सख्त चेतावनी दे दी। आख़िरकार नवाब हमीदुल्लाह को भारी मन से नहीं मिला, इसके बाद भी भोपाल रियासत का विलय 01 जून 1949 को भारत में करना पड़ा।

इसके बाद तो बैंक ऑफ भोपाल की जो शाखा कराची में प्लास्टिक जाने वाली थी, उसकी योजना ही समाप्त हो गई। हालाँकि वो पैसा कहाँ गया, क्या वो वापस भोपाल लौटा, ये अब तक सवाल है।

किस तरह फिर भोपाल का भारत में हुआ विलय
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता संग्राम के बाद भोपाल के नवाब ने अपने चैंबर ऑफ प्रिंसेस को अधिकार समाप्त करने की घोषणा कर दी। भोपाल के नवाब 25 जुलाई 1947 की उस बैठक में भी नहीं गए, जिसे माउंटबेटन ने दिल्ली में अंजाम दिया था। बाद में माउंटबेटन ने भोपाल के नवाब को सामा और ऐसी जगह बनाई कि उन्हें भारत में विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर के लिए सहमति दे दी गई। उन्होंने कुछ हंसी-खुशी के साथ लिया

टैग: भोपाल, जिन्ना, पाकिस्तान



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