लक्षेश्वर यादव/जांजगीर चांपा:- छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोक नृत्य डंडा नाच (नृत्य) है, जिसे छत्तीसगढ़ में कुई नाच भी कहा जाता है। इसके अलावा इन दिनों में गांव-गांव में डांडा नाच किया जा रहा है। बांस के डंडों पर आधारित यह नृत्य यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध और पारंपरिक लोक नृत्य है। जनजातीय में प्रचलित इस नृत्य में पुरुष 10 से 20 की संख्या में सामूहिक नृत्य करते हैं।
बता दें कि जांजगीर चांपा में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध और पारंपरिक लोक नृत्य डंडा नाच की परंपरा के आज भी कलाकार बने हुए हैं। पामगढ़ और अकलतरा के युवा और छोटे-छोटे बच्चे समूह हाथों में डंडा लिए घर-घर में पारंपरिक लोक गीत और डंडा नृत्य कर रहे हैं। डंडा नाच कर रहे डेमोक्रेट ने बताया कि फसल काटने वाले के बाद सभी घरों में धान पहुंच जाता है। हम नृत्य और गीत के माध्यम से ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमेशा किसानों की धान की कोठी भरी रहे।
ऐसा होता है डंडा नाच
डंडा नाच एक गोलाकार आकार या सीधे वजन का ज्ञान है। नृत्य करने वाले समूह के सदस्यों के हाथ में एक या दो पद होते हैं। इसकी शुरुआत में नृत्य-ताल्या में नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है और फिर कुहकी देने वाले के कुहकी प्रस्तुति पर संगीत गायन के साथ नृत्य का शुभारंभ किया जाता है। डांस करने वालों के हाथों में जो डंडा होता है, उसे वे गोल-गोल घुमाते हुए झूम-झूमकर, झिझककर, झुककर, कभी-कभी तो कभी बाएं होते हुए एक दूसरे के डंडो पर चोट मारते हैं। डाक्यूमेंट्स पर डाक्यूमेंट्स से बहुत ही कर्ण प्रिय ध्वनि उत्पन्न होती है, जिसे देखकर बहुत ही आनंद की अनुभूति होती है।
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डंडा नृत्य पुरुषों की सर्वोच्च संस्था
डंडा नाच समूह के शिवकुमार ने बताया कि डंडा नृत्य पुरुषों और मनपसंद नृत्यों में से एक है। हर किसी की पोस्ट एक-दूसरे से टकराती है और इस दौरान मनमोहक आवाज़ निकलती है। डंडों से नृत्य करने वालों के अलावा भी एक समूह होता है, जो नृत्य करने के लिए संगीत गायन, मांदर, मंजीरा बजाते हैं। इसके साथ ही ग्रुप में एक व्यक्ति नृत्य को ताल और गति देता है, उस व्यक्ति के कार्य को कुटकी कहते हैं। समूह में मादर, ढोल, झांझ, मंजीरा, हारमोनियम, बांसुरी वादन भी होते हैं।
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पहले प्रकाशित : 24 जनवरी, 2024, 14:10 IST
