Homeछत्तीसगढ़महाशिवरात्रि-विशेष-शिवलिंग-प्रकृति-करती है-महादेव का जलाभिषेक- News18 हिंदी

महाशिवरात्रि-विशेष-शिवलिंग-प्रकृति-करती है-महादेव का जलाभिषेक- News18 हिंदी


लक्षेश्वर यादव/जांजगीर चांपा. छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से अलग नवाँतम जिला सक्ती के रियाद तुर्रीधाम हैं। जहां शिव भक्तों के लिए अत्यंत पूजनीय है, यहां पर बारह मास के भक्त आते हैं। लेकिन महाशिवरात्रि और सावन माह में अधिक संख्या में शिव भक्त मन अपनी लेकर तुरहीधाम की चौकी हैं। स्थानीय दृष्टिकोण से यहां सम्मिलित शिवलिंग, प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के समान ही वंदनीय वंदनीय है। यह तुर्रीधाम सक्ती-चांपा मार्ग सक्ती जिला मुख्यालय से 12 कि.मी. की दूरी ग्राम पंचायत बेसिन के अंतर्गत आती है। यहां मनाए जाने वाले उत्सव में लाखों आठवें दर्शन आते हैं। वहीं, सावन मास में शिव भक्तों की संख्या हजारों में होती है।

मंदिर के निर्माण से संबंधित जानकारी देते हुए पंडित गौतम पुरी गोस्वामी ने बताया कि इसका निर्माण स्थानीय शक्ति के द्वारा किया गया था, लेकिन यह किस राजा के शासन में बनाया गया था यह अज्ञात है। इसका जीर्णोद्धार 3-4 संन्यास से जा रहा है। वर्तमान में यह मंदिर पूर्णतः आधुनिक स्वरूप में बना हुआ है। इस मंदिर की स्थापत्य अनोखी है। इसके चारों ओर पॅलेज बनाया गया है. गर्भगृह मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से 8 फीट की गहराई पर है, गर्भगृह जाने के लिए नीचे दी गई प्रसिद्ध सीढ़ियाँ बनी हुई है। यहां शिवलिंग पूर्वाभिमुख है। इस तुर्रीधाम की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके गर्भागृह में एक प्राकृतिक जल स्रोत है जिसे स्थानीय भाषा में तुर्री (निरंतर) कहा जाता है। यह जल स्त्रोत अनादि काल से बयात्सत बहता हुआ आ रहा है, जहां से जल अभिषेक हो रहा है। वहां की दीवार पर योनि का आकार बना हुआ है, साथ ही यह जल कहां से आया है, इसका आज भी रहस्य है, इसका पता कोई भी वैज्ञानिक नहीं लगा पाए हैं। इसी जल पुंज के नीचे ही उत्तर मुखी प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। जिस पर हमेशा ही प्राकृतिक रूप से शिवलिंग पर जलाभिषेक होता रहता है।

जलस्रोत आज भी है रहस्य
पंडित ने बताया कि यह जल स्रोत कहां से आ रहा है इसका पता नहीं चल पाया है। इस जल संसाधन की विशेषता यह है कि इसकी गति वर्ष, ग्रीष्म, शीत ऋतु में अलग-अलग समय में धीमी और तेज होती है। लेकिन यह जलस्रोत आजतक बंद नहीं हुआ है. इस जल पुंज को स्थानीय लोग गंगाजल के समान ही पवित्र और औषधीय गुणों से भरपूर मान कर बोतलों में मसाले अपने घर लेकर जाते हैं। सिद्धांत यह है कि इस जल को पीने से अत्यंत ही लाभ होता है। उन्होंने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग के नजदीक ही नंदी पश्चिम की ओर मुख किए हुए स्थान हैं।

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देश-विदेश से आते हैं लोग
यह प्राचीन नंदी की खंडित प्रतिमा को ग्राम्य गज के अंग हैं। वहीं, दूसरी ओर नंदी मंदिर के शिवलिंग के सम्मुख जलधारा घाट के निकट जीर्णोद्धार के समय बनाया गया। गर्भगृह में अन्य देवी देवता भी स्थापित हैं, शिवालय से टाइल की ओर राम जानकी जी मंदिर, देवी दुर्गा जी मंदिर, हनुमान जी का मंदिर जैसे तारा मंदिर तुर्रीधाम में स्थित है। पंडित जी ने बताया कि यहां पर सावन माह में 15 दिन का मेला लगता है और सावन माह में 1 माह का मेला लगता है। यहां दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के विभिन्न स्मारकों के दर्शन भी होते हैं।

जश्न मनाने वालों की भीड़ है
दशम हर्ष रेस्तरां ने बताया कि वह बाराद्वार किरारी में रहने वाले हैं, लेकिन वर्तमान में मुंबई में रहते हैं, लेकिन जब भी वह अपने घर किरारी आते हैं तब तुर्रिधाम जरूर आते हैं। यहां शिव जी के दर्शन करके मन बहुत लोकप्रिय हो जाता है। वहीं, अभी भी समुद्र तट पर तुर्रीधाम दर्शन करने परिवार के साथ आए हैं। परिवार की सुख शांति के लिए यहां बचपन के दर्शन करने आ रहे हैं।

टैग: छत्तीसगढ़ समाचार, स्थानीय18, महा शिवरात्रि, धर्म

अस्वीकरण: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्यों और आचार्यों से बात करके लिखी गई है। कोई भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि संयोग ही है। ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है। बताई गई किसी भी बात का लोकल-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है।



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