ओपीपी/सोपानकोरबा. परिवर्तन के लिए उपकरण की आवश्यकता नहीं है, बल्कि जिद व जज्बा होना चाहिए। यह बात है टीचर्स राजकुमारी खान ने सिद्ध कर दी। कटघोरा ब्लॉक के भाटापारा गांव का सरकारी प्राइमरी स्कूल साल भर पहले से लेकर अंतिम वर्ष तक था। क्लास रूम में फर्नीचर के अभाव में बच्चे टाट पट्टियाँ पर पढ़ाई करते थे। स्कूल परिसर में चारों ओर झाड़ियाँ उग आई थीं। भवन भी खंडहर हो गया था, मगर आज-इसी स्कूल को किसी ने देखा तो पहली नजर में उसे यह कोई प्राइवेट प्ले स्कूल नजर आया। नामांकित शिक्षक फिरोज खान ने बताया कि स्कूल का स्वरूप ही बदला हुआ नहीं है, बल्कि यहां पढ़ाई का तरीका भी बदल दिया गया है। इतनी छुट्टियाँ भी नहीं मिलतीं, फिर भी बच्चे यहाँ स्कूल में रहते हैं। गांव ही नहीं आस-पास के इलाके के निवासी भी अब अपने बच्चों को इसी स्कूल में भर्ती की समीक्षा लाते हैं।
2008 में बीहड़ आदिवासियों के क्षेत्र में स्थित नोनबिर्रा गांव के बालकों के गांव मखियारा खान के सामान वार्डन के रूप में हुई थी। वह सरकारी और खास तौर पर गांव के बच्चों को पढ़ना चाहती थी और 2011 में कहीं के एक स्कूल में उन्हें मौका मिला। 2013 में उनकी पोस्टिंग बनियापारा के प्राइमरी स्कूल में हुई। वहां उन्होंने फिर से हेडमास्टर बनी, फिर से पुतली के श्रमदान और विभिन्न स्थानों पर सेवा भावी स्टॉक से सहयोग लेकर उस स्कूल का स्वरूप बदलना शुरू किया। धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे बच्चों के साथी भी बढ़ते चले गए।
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नवीनतम का मिलान सहयोग
फ़्रॉचिका ने बताया कि 15 जून को प्रभारी प्रधान पाठक की ज़िम्मेदारी मीटिंग के बाद सबसे पहले पुतले को स्कूल के रूप में जोड़ा गया। परिसर की न तो केवल सफाई की गई बल्कि गांव की महिलाओं ने श्रमदान कर पेड़ के नीचे चबूतरा बनवाना शुरू कर दिया। विभिन्न सेवाभावी एवं सामाजिक संस्था से सहयोग लेकर स्कूल भवन की वसूली की गई। बच्चों के लिए यूनिफॉर्म और क्लास के रूप में फर्नीचर फर्नीचर।
बुवा से मिली प्रेरणा
फ़्रॉचाइज़ खान ने बताया कि उनकी बिकाऊ शबनम खान स्ट्रेंजर थी। बचपन से देख कर मिस्टर बनने का जज्बा जाग गया। फादर एससीसीएल बांकीमोंगरा के अधिकारी पद से हटाए गए हैं। फ्रेंचा ने अंग्रेजी, हिंदी व इकोनोमी में ट्रिपल एमए व डीएड किया है। पति रीवा में रेलवे कर्मचारी हैं। उनका कहना है कि मां मेहरुन्निशा और पति अरशद के सहयोग के बिना यह संभव नहीं है कि वह फिर से काम कर सकेंगी। शुरू से ही मैंने सरकारी स्कूल में ही अपने ससुर की तलाश शुरू की, जहां गरीब परिवार के ही बच्चे पढ़ते थे।
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पहले प्रकाशित : मार्च 12, 2024, 14:11 IST
