लक्षेश्वर यादव/जांजगीर चांपा : छत्तीसगढ़ प्रदेश अपनी विशिष्ट लोक कला और संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में काफी प्रसिद्ध है। वैसे तो यहां विवाह संस्कार एक विशेष परंपरा के अंतर्गत मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में विवाह तीन से पांच दिन के होते हैं, जिन्हें तीन तेल या पांच तेल भी कहा जाता है। जिसमें विभिन्न प्रकार की रैलियों का विवरण दिया गया है। वहीं आज हम आपको छत्तीसगढ़ में पैलेस पैलेस के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे छत्तीसगढ़ी भाषा में मड़वा कहा जाता है।
जांजगीर जिला मुख्यालय में पुरानी सीलन कॉलोनी में स्थित दुर्गा मंदिर के पुजारी बसंत महाराज शर्मा ने बताया कि दो बांस और चार पांच पेड़ों के दल, तीर्थ सहित तीर्थस्थल (मड़वा) बनाया जाता है। बांसों को बैल की मिट्टी खोदकर गाड़ा जाता है।
इनस्टिनेशन की बनी हुई है झालर
वर्तमान में सजावट करने के लिए तेल के टीपा (टीन) में सोलोमन मेमोरियल बनाये जाते हैं। उसके बाद उन बांसों के पास मिट्टी के दो कलश रखे जाते हैं, जिनमें दीपक जलता रहता है। उन्होंने बताया कि बांसों के ऊपर, पूरे बगीचे में पेड़ों के छोटे-छोटे दंगल का झालर फंसाया जाता है। जिनमें मुख्य रूप से डूमर, जैम, चाइनीज़, एम के गर्ल का उपयोग किया जाता है। जिसे वाइज़ कहते हैं और जापानी के लकड़ी से बढ़ई द्वारा मैंग्रोन का उपयोग किया जाता है। इसके बिना विवाह-संपत्ति नहीं होती है।
मंडवा रिएलिटी का विवरण महत्वपूर्ण है
उन्होंने बताया कि विवाह के मंडप (मड़वा) में बांस का उपयोग किया जाता है। चूँकि बाँस का रोग होता है और इसके साथ-साथ हृदय भी बढ़ता है, वैसे ही परिवार की भी वृद्धि होती है। इसलिए बांस का उपयोग किया जाता है. वधू का यह भी महत्व है कि शादी के समय जब वर/वधू को हल्दी तेल चढ़ाया जाता है तो नहडोरी के बाद सात बार वधू के हाथ से गोल घूमकर वर वधू के हाथ से छुवाया जाता है उसके बाद हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। अगर वर की शादी है तो बारात जाने की तैयारी होती है और वधू है तो बारात आने की तैयारी होती है।
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पहले प्रकाशित : 25 दिसंबर, 2023, 18:51 IST
